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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((995))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५१२(512)*
*ईर्ष्या एवं अभिमान*
*भाग- १०*
आज साधकजनो एक अंतिम प्रयास उस महिला ने किया है । आजकल polyclinics है, multispeciality clinics हैं, कई लोगों को उसके रोग का पता है । बेचारी जगह जगह भटक रही है । लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं हुआ । आज ऐसे क्लीनिक में गई है डॉक्टरों का एक pannel बैठा हुआ है । उसमें neurologist भी है, psychologist भी है, psychiatrist भी हैं, इत्यादि इत्यादि । पूरा bench बैठा हुआ है और इस देवी को examine किया जा रहा है । Examine करने के बाद देवियो सज्जनो जो उन्होंने निष्कर्ष निकाला, उनकी diagnoses है, देखिएगा diagnoses यह है -
यह बड़ी बहन है । अपनी छोटी बहन से घृणा करती है । अतएव उसके प्रति क्रुद्ध व्यवहार, उसके प्रति द्वेष की भावना, मानो अनेक सारी अग्नियां अंदर जल रही है । हुआ क्या ? जिससे यह प्रेम करती थी और विवाह करना चाहती थी, उससे छोटी का विवाह हो गया । यह बात यह सहन नहीं कर पार्ई । यह बात यह स्वीकार नहीं कर पाई । बड़ी बहन है, इसलिए जब कभी मिलन होता है तो, ऊपर ऊपर से तो प्यार जताती है, लेकिन अंदर से जैसे बम का गोला हो।
कैसे किसी ना किसी ढंग से इसकी जान ले लूं, मार डालूं इसे । अंदर ही अंदर घृणा की आग, उसके अंदर द्वेष की आग, उसके अंदर भड़क रही है । ज्वाला धड़क रही है उसके अंदर । यह diagnoses डॉक्टरों ने की थी। कहा देवी का इलाज हमारे पास नहीं है । मेहरबानी करके किसी संत महात्मा की चरण शरण में जाओ । वह तेरा इलाज करेगा । ऐसा ही हुआ । संबंध तो पहले भी था, लेकिन कभी संत के सामने, कभी वहां के जो आचार्य हैं, उनके सामने अपना मुख नहीं खोला । आती रही है, जाती रही है, लेकिन कभी दिल खोल कर बात नहीं की । हिम्मत नहीं पड़ी । क्योंकि आत्महत्या के प्रयास भी कर चुकी हुई थी । जाप में मन नहीं लगा । सत्संगति से जो कुछ भी सुनती है उसको follow नहीं कर पाती । तो किस मुख से संत के सामने जाए । अतएव बिल्कुल कभी नहीं गई ।
आज हिम्मत की है डॉक्टरों के कहने पर, आज संत महात्मा की चरण शरण में गई
है । जाकर अपनी व्यथा सुनाई । थोड़ी सुनानी पड़ी । अधिक सुनाने की जरूरत नहीं थी । थोड़ी सी बात से, उसके चेहरे से, उसका चेहरा, उसका व्यवहार, उसका सब कुछ it speaks.
कुछ सुनने की, करने की जरूरत नहीं । मानो बिना बोले ही सब कुछ समझा जा सकता है, की इस बेचारी को क्या रोग लगा हुआ है ? खट-खट करता है शरीर ।
तीस वर्ष की आयु की महिला Unmarried हो तो अच्छी सेहत होनी चाहिए । अच्छे घराने की लड़की खाने पीने की कोई किसी प्रकार की कमी नहीं थी वहां पर । लेकिन अपनी दुर्बल्य के कारण अपनी गलतियों के कारण, अपनी यह दुर्दशा उसने कर ली हुई थी । अनेक वर्ष इस दुर्दशा में बीत गए हैं ।
आज संत ने इतना ही कहा बेटा, एक बात पूछूं - क्या तुम्हें, सत्संग में आते हुए यह बात अनेक बार दोहराई जा रही है, याद नहीं, संयोग वियोग, जन्म मरण यह सब परमात्मा के अधीन है। क्या तुम्हें इस पर विश्वास है कि नहीं ?
हां, विश्वास है । फिर ईर्ष्या किस बात की ? क्या अन्याय हुआ है तेरे साथ । यदि तेरे साथ इसका विवाह होना लिखा गया था, विधाता ने तेरा साथ लिखा होता, तो तेरे साथ विवाह हो गया होता । यदि नहीं लिखा, तो नहीं हुआ ।
फिर रुष्ट क्यों हो उससे ।
जिससे हो गया है, जिसके साथ लिखा हुआ था, यदि तू सोचती है यह सब कुछ तेरे हाथ में था, तो फिर तूने विवाह क्यों नहीं कर लिया । स्पष्ट है यह तेरे हाथ में नहीं है ।
यह किसी के भी हाथ में नहीं है । यह परमात्मा के ही हाथ में है । यह परमात्मा ने अपने हाथ में रखा हुआ है ।
यश अपयश देना, मान अपमान देना, यह सब परमात्मा ने अपने हाथ में रखा हुआ है । संयोग वियोग सब अपने हाथ में, सफलता असफलता, किस कर्म का कितना फल देना है, कहां देना है, इत्यादि इत्यादि, कैसा देना है, यह परमात्मा के सिवाय कोई नहीं जानने वाला । यह सब परमात्मा ने अपने हाथ रखा हुआ है । फिर दुखी क्यों है । यदि तू इन बातों को जानती है, यदि तुझे इन बातों पर विश्वास है, इतने वर्ष हो गए हैं तुम्हें सत्संगति में आते हुए, क्या यह सीखा नहीं तूने । फिर यदि सीखा है, तो फिर यह क्रुद्ध चेहरा क्यों, यह ईर्ष्यालु व्यवहार क्यों, तेरा आचरण फिर इस प्रकार से क्यों, फिर कुड़-कुड़ किस बात की कर रही हो । फिर यह रोग को अपने सिर पर क्यों रखे हुए हो । क्यों यह बोझ अपनी जिंदगी में उठाए हुए हो, खत्म करो इसे ।
आज घर पर जाकर यहीं से शुरू करो । मेरे सामने परमात्मा के आगे मस्तक नवां कर, अपने सिर को परमात्मा के श्री चरणों पर रखकर, परमात्मा से क्षमा मांगो । देवी मैं तुम्हें आश्वासन देता हूं । यदि परमात्मा ने तुम्हें क्षमा, यदि तुमने परमात्मा से क्षमा मांगी तो, परमात्मा तुम्हें बल देगा, अपनी बहन को क्षमा करने का । तू मेरे से वायदा कर, घर जाकर तू अपनी बहन को क्षमा कर देगी । तू अपनी बहन को क्षमा कर देगी तो परमात्मा तुम्हें क्षमा कर देगा । तूने बहुत अपराध किए हैं । दो बार तूने आत्महत्या के लिए प्रयास किए हैं । यह कोई छोटा-मोटा अपराध नहीं है । तेरा जीवन कितना सुंदर होना चाहिए था । तूने उसे कितना बेढंगा बना लिया हुआ है । कितना बेसुरा उसे बना लिया हुआ है । कितना विकृत जीवन तूने बना लिया हुआ है अपना तेरी अपनी गलतियों के कारण । किसी का कोई दोष नहीं है ।
विधाता ने तेरी बहन का विवाह उसके साथ लिखा हुआ था, सो हो गया । तो तुझे कुड़-कुड़, चिड़-चिड़ करने की बिल्कुल कोई आवश्यकता नहीं है । साधक तो वही है साधक जनो, जो परमात्मा की करनी को सहर्ष शिरोधार्य करना सीख जाता है । यदि यह साधक कों अभी तक नहीं आया, तो उसे समझना चाहिए कि उसकी साधना की यात्रा अभी बहुत शेष है ।
परमात्मा की करनी में कोई दोष नहीं है, कोई अन्याय नहीं है, कोई अत्याचार नहीं है, कोई त्रुटि नहीं है, उसकी हर करनी में, हर एक का हित है । कभी अनुकूल तो उसमें भी हित, कभी प्रतिकूल तो उसमें भी हित ।
जो साधक इस बात को पहचान जाता है साधक जनों, वह परम शांति का भागी हो जाता है ।
आप कुछ भी कर लो, जैसा इस महिला ने करके देखा, तरह-तरह के इलाज करवा लिए हैं, लेकिन रोग तो खत्म नहीं हुआ । रोग तो टस से मस नहीं हुआ । बिल्कुल वैसा का वैसा ही बना रहा क्यों ? क्यों बना रहा ? इसलिए रोग का कारण तो मिटा ही नहीं । जब तक रोग का कारण नहीं मिटेगा, तो रोग कैसे मिटेगा । रोग का कारण ढूंढो ।
मेरी माताओ सज्जनो पुन: आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं, हम किसी ना किसी प्रकार से, हर एक कोई ना कोई रोग उठाए हुए हैं । घर जाकर ढूंढो, खोजो, इस रोग का कारण क्या है ? कोई ना कोई विकार मिलेगा । तनिक सोचो सिर दर्द है किसी को, सिर दर्द रोग नहीं है, एक चिन्ह
है । Brain tumour भी हो सकता है, Brain के ऊपर झील्लियां होती हैं, उनकी सूजन भी हो सकती है, पेट की खराबी भी हो सकती है, पेट में गैस बहुत है, सिर दर्द होती है, अनेक सारे कारण है सिर दर्द के, आप माइग्रेन कारण है सिर दर्द का, आप pain killer लेते हो, आपकी सिर दर्द ठीक हो जाती है थोड़े समय के लिए ।
शाम को फिर लेनी पड़ती है या अगले दिन फिर लेनी पड़ती है या दो दिन के बाद फिर लेनी पड़ती है क्यों ? अभी तक कारण नहीं पता चला । आप खोपड़ी का X-ray करवाते हो ना जाने क्या-क्या करवाते हो, MRI इत्यादि इत्यादि इतना कुछ करवाने के बावजूद भी सब कुछ normal निकलता
है । दोष क्या है ? आँखें ठीक नहीं । आंखों की muscels कमजोर हैं।
Conversion inefficiency है । आंखें पूरी तरह से converse नहीं कर पाती । इसलिए सिर दर्द होती है । एक मिनट लगता है, पता लगा । उसके बाद एक सप्ताह की exercise और सिर दर्द कभी होती नहीं
है । क्यों ? कारण पता लग गया । जब तक देवियो सज्जनो रोग का कारण नहीं पता लगेगा, तब तक रोग बने रहेंगे । हमारे सबके रोग लगभग इसी प्रकार के हैं ।
हम ऊपर ऊपर से इलाज करवा रहे हैं, लेकिन रोग टस से मस नहीं होते । रोग वैसे के वैसे ही बने हुए हैं । क्यों, हमने कारण को नहीं निकाला । तो देवियो सज्जनो ईर्ष्या की चर्चा, द्वेष की चर्चा, अभिमान की चर्चा, विकारों की चर्चा, यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा धन्यवाद ।
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