Premium Only Content
Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1042))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५५९(559)*
*जैसी करनी वैसा फल भाग ५*
*"जैसी करनी वैसा फल;*
*आज नहीं तो निश्चय कल*
साधक जनों, यह कर्म दबे रहते हैं । आदमी कुकर्म करता है । कई दफा ऐसा होता है ना, आपको दिखाई नहीं देता है कि, व्यक्ति पाप कर्म करता हुआ भी फल फूल रहा है । मानो वह पाप अभी उनके Mature नहीं हुए हैं । अभी कुछ पुण्य कर्मों से वह पाप कर्म दबे हुए हैं । अतएव पुण्य कर्मों का फल तो अभी मिल रहा है, लेकिन अभी पाप की बारी नहीं आई ।
पाप की बारी, जैसे इनके साथ हुआ, इतनी देर तक मठाधीश गुरु, आचार्य बने रहे । आज पाप Mature हो गया है, तो हाथ कट गए ।
वंदनीय, निंदनीय हो गया ।
लोग निंदा करने लग गए । उनके मन में किसी प्रकार का सम्मान ना रहा, लोग गाली गलोच निकालते हैं । मिथ्या आरोप लगाते हैं, आलोचना करते हैं । हम तो कुछ और समझते थे । यह कुछ और निकला । तरह-तरह की बातें । कौन माने कि यह निरअपराधी हैं । राजा साहब ने सजा दी है। मन ही मन सोचा इतने वर्ष यहां रहकर, यहां के लोगों की सेवा की है, उन्हें मुझ पर इतना विश्वास नहीं, जितना राजा की करनी पर । यहां रहना ठीक नहीं, मुझे यहां से चले जाना चाहिए ।
एक मित्र हैं उनके । काशी में रहते हैं ।
यह तो इस तरफ आ गए ।
वह ज्योतिषाचार्य बन गए । वह मित्र जो काशी में रहते हैं बहुत बड़े ज्योतिषी हैं । इतना ही नहीं परमात्मा की उन पर विशेष कृपा है, कि वह पिछले जन्मो का, और अगले जन्म का भी जान सकते हैं । कईयों को यह परमात्मा की देन हुआ करती है। साधना सिद्धि नहीं है, लेकिन परमात्मा की देन है ।
साधारण ज्योतिषी है । ज्योतिष विद्या वह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं । सोचा बहुत देर से उनसे मिला नहीं । चलो इतनी घनिष्ठ मित्रता थी, आज उनसे मिल कर आता हूं। उनके पास चले गए । पता भी नहीं था वह कहां रहते हैं । लेकिन थे प्रसिद्ध ।
अतएव घर के पते की जानकारी कर ली । काशी जाकर उनके घर का द्वार
खटखटाया । पत्नी ने द्वार खोला ।
कौन है आप ? बड़े कर्कश शब्दों में, बड़े कठोर शब्दों में पूछा । यह उन्हीं का घर है जिनके पास में आया हूं, नाम लिया ज्योतिष आचार्य अमुक,अमुक ।
हां उन्हीं का घर है । मैं उनकी पत्नी हूं ।
उन्हें भी गाली दी और इन को भी गाली सुनाई । कोई महिला, चंडी स्वभाव की महिला थी । कथा में कहां जा रहा है, अच्छे स्वभाव की महिला नहीं थी । दोनों को गालियां सुनाइ । बड़े बड़े कटु शब्द प्रयोग किए । कहा इस वक्त कहां मिलेंगे । मैं उनसे मिलना चाहता हूं । काशी घाट पर अमुक अमुक वहां पता कर लीजिएगा जाकर ।
घाट पर मिलेंगे मिलेंगे ।
यह बेचारा गंगा जी के घाट पर चला गया है। जाकर अपने मित्र से मिला । बहुत प्यार से एक दूसरे को मिले, लंबे अरसे के बाद, चिरकाल उपरांत, मिलन हुआ । आलिंगन किया । कहो मित्र कैसे याद आई मेरी ।
कैसे आना हुआ, यह क्या हुआ है ?
तुम्हारे हाथ ऐसे तो नहीं थे ।
कहा इसकी बात तो मैं बाद में करूंगा । पहले आप मुझे यह बताओ,
मैं तेरे घर गया था । तुम इतना महान पंडित, ज्योतिषाचार्य, तेरी पत्नी इतने कर्कश स्वभाव की । पहली मुलाकात उसने सदैव स्मरणीय मुलाकात बना दी । इतना कठोर स्वभाव । ऐसा दुर्व्यवहार मेरे लिए भूलना कठिन । इतना बड़ा व्यक्ति होने के बावजूद भी तू अपनी पत्नी का कुछ नहीं कर सका। तूने उसके साथ जीवन व्यतीत कर दिया। उसका स्वभाव नहीं बदल सका ।
कहा मित्र कर्मो के खेल हैं । यह तो भुगतना ही पड़ते है । बदलने से बदलते नहीं है । मेरी ऐसी कमाई नहीं ।
कल भी आपसे अर्ज करी थी ।
भक्ति बहुत कुछ बदल कर रख सकती है । ज्ञान चीजों को प्रकाशित करता है ।
ज्ञान प्रकाश है, तो प्रकाश का क्या काम होता है, जहां अंधकार है उसको दूर कर देता है । ज्ञान चीजों को बदल नहीं सकता । ज्ञान और भक्ति में क्या अंतर है ? ज्ञान चीजों को प्रकाशित करता है । जैसी जो चीज है वैसी दर्शाता है ।
जैसे आपको यह शक हुआ कि, पता नहीं यह रस्सी है, या सांप । तो आपने वहां पर कोई दीपक इत्यादि,Torch इत्यादि से प्रकाश किया । तो आपको बोध हो जाता है कि यह रस्सी है या सांप । ज्ञान प्रकाशित करता है । भक्ति में समर्थ है चीजों को बदलने की ।
महर्षि विश्वामित्र ब्राह्मण नहीं थे ।
ऐसी भक्ति की, ऐसा तप किया, जीवन काल में ही क्षत्रिय से ब्राह्मण बन गए,
ब्रह्म ऋषि बन गए ।
भक्ति में समर्थ है, वह बदलती है ।
कहा मैने जीवन में इतनी भक्ति नहीं की,
मैं कुछ बदल सकता । अतएव अपने कर्मों का फल भुगत रहा हूं ।
सुनाते हैं- मित्र पिछले जन्म में मेरी पत्नी गधी थी और मैं कौवा । अपना पिछला जन्म बता रहे हैं । कर्म कहां कहां किस प्रकार से पकड़ते हैं । परमात्मा को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, इन हमारे कर्मों के भुगतान के लिए । मेरी पत्नी पिछले जन्म में गधी थी और मैं कौवा । इस के शरीर पर अनेक जख्म थे । मेरा स्वभाव इस प्रकार का कोई परेशान करने का स्वभाव नहीं था । मैं इसके जख्मों पर चोंच मारता । नित्य यही काम । यह भी इधर-उधर घूमती होती, मैं भी उड़ता उड़ता इसके पास आ जाता । मेरा भोजन भी मिल जाता मुझे और अपने स्वभाव के कारण, स्वभाव के अनुसार चोंच मारता । मेरा स्वभाव ही है चोंच मारना । आज हुआ यूं चोंच इतने जोर से लग गई कि मेरी चोंच इसकी हड्डी में फस गई ।
-
18:14
Nikko Ortiz
11 hours agoMost Painful Internet Clips...
6.53K8 -
2:08:21
Side Scrollers Podcast
17 hours agoHasan Dog Joke Gets Streamer BANNED + Great Reset 100% CONFIRMED + More | Side Scrollers
42.3K9 -
11:35
MetatronGaming
3 days agoYou Won't Believe Your Own Eyes..
1.53K -
20:22
The Pascal Show
7 hours ago $0.02 earnedARE THEY IGNORING HER?! Is The White House & FBI Ignoring Candace Owens' A**assination Claims?!
1.42K -
1:24:49
omarelattar
2 days agoThe $100M Sales Expert: “The Psychology of Selling To Anyone!” (High Ticket, Phone & Ai Secrets)
25.4K3 -
18:36
GritsGG
12 hours agoTrios is BACK! Slamming Lobby w/ Mr. Bobby Poff!
1.68K -
LIVE
Lofi Girl
3 years agolofi hip hop radio 📚 - beats to relax/study to
289 watching -
2:48:21
FreshandFit
14 hours agoNarcissistic Mid European Got Called Out And THIS Happened...
207K73 -
1:48:12
Badlands Media
13 hours agoBaseless Conspiracies Ep. 161: The Human Hunting Files
79.7K31 -
1:56:01
Inverted World Live
6 hours agoHome is Where The Great Pacific Garbage Patch is | Ep. 148
67.6K6