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Raksha bandhan per pravachan
*रक्षाबंधन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई मंगलकामनाएं एवं शुभकामनाएं*
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से।
*रक्षाबंधन*
आज रक्षाबंधन है । पूर्णिमा भी है । इस मांगलिक पर्व की आप सबको हार्दिक बधाई देता हूं । शुभकामनाएं, मंगलकामनाएं । कल समाचार पत्र में था कि राखी बंधवाने का, बांधने का शुभ समय है 7:45 से 9:00 के बीच तो सत्संग की समाप्ति के बाद जो साधक राखी बंधवाना चाहते हैं, जो देवियां राखी बांधती हैं, जाकर बांध
सकते हैं । बहुत कष्ट उठाकर आज आप आए हैं । यह कष्ट किसी व्यक्ति द्वारा तो दिया हुआ नहीं है । यह तो परमात्मा की ओर से, प्रकृति की ओर से है । आप सब इस कष्ट को सहर्ष सहते हुए यहां पधारे हैं, तो मुझे पूर्ण आशा है आज के इस कष्ट को परमात्मा आपकी तपस्या मानेगा । यदि नहीं मानेगा तो मेरी हाथ जोड़कर परमेश्वर से प्रार्थना है, कि आज जो कष्ट आपको आने में हुआ है, व जाने में होगा, हे परमात्मा देव ! वह कष्ट कष्ट ना हो इन की तपस्या स्वीकार कीजिएगा । हार्दिक धन्यवादी हूं आप सबका पधारने के लिए ।
चर्चा चल रही है मजदूरी को पूजा कैसे बनाया जाए । चर्चा चल रही है कर्म को कर्मयोग कैसे बनाया जाए ? आज छठे अध्याय की समाप्ति पर भी गीताचार्य भगवान श्री कृष्ण ने योग की महिमा गाई है। प्रथम अध्याय में और दूसरे अध्याय के शुभारंभ में अर्जुन योगी बनना चाहता है। लेकिन कौन सा योगी ? भीख मांगने वाला । मैं युद्ध नहीं करूंगा । मैं अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करूंगा । मैं भीख मांग कर तो गुजारा कर लूंगा । प्रथम अध्याय में उसकी यह मांग है । भगवान श्री तभी निश्चय कर लेते हैं, पार्थ मैं तुम्हें योगी तो बनाऊंगा, लेकिन भीख मांगने वाला योगी नहीं,
मैं तुम्हें कर्म करने वाला योगी बनाऊंगा । आज भी इस अध्याय की समाप्ति पर यही कहा है ।
तू ऐसा योगी बन,
निष्काम भाव से कर्म करने वाला योगी बन। ऐसे योगी को कर्मयोगी कहा जाता है । उसका स्थान बहुत उच्च है । श्रद्धावान कर्मयोगी का स्थान तो और भी उच्च है । स्वामी जी महाराज श्रद्धावान कर्मयोग को भक्तिमय कर्मयोग का नाम देते हैं ।
स्वामी जी महाराज की साधना क्या है ? भक्तिमय कर्मयोग । हम सब यही चाहते हैं की हम सब भक्तिमय कर्मयोगी बने । तो चर्चा का विषय यही है, साधकजनों यही चर्चा कुछ दिनों से चल रही है ।
कर्मयोग को निष्काम कर्म भी कहा जाता है। इससे पहले जो कुछ आप सुन चुके हैं उसको Repeat करने की आवश्यकता नहीं। आगे बढ़ते हैं । कर्मयोग को निष्काम कर्म भी कहा जाता है । अर्थात बिना कामना के, निष्काम अर्थात कोई कामना ना रखकर कर्म को करना ।
कामना क्या है ?
आपको पहले भी कहा था नाम इसके भिन्न-भिन्न हो सकते हैं । अनेक हो सकते हैं। लेकिन एक संसारी की एक ही कामना है कि वह सांसारिक सुख चाहता है । चाहे वह सफलता के रूप में मिले, चाहे वह विजय के रूप में मिले, Promotion के रूप में मिले, यश मान के रूप में मिले, ख्याति के रूप में मिले, प्रशंसा के रूप में मिले, पुरस्कार के रूप में मिले, कुछ बनने के रूप में मिले।
कामना एक ही है साधकजनों । घुमा फिरा कर के इन सब से क्या चाहिए आपको ? आप सांसारिक सुख चाहते हैं । सांसारिक सुख सुविधा का होना ही कामना है । और जब तक संत महात्मा कहते हैं, यह कामना बनी रहेगी, तब तक परमसुख कि चाह, वास्तविक चाह आपके अंदर उत्पन्न नहीं हो सकती । जब तक यह चाह उत्पन्न नहीं होगी, तब तक आप को शांति प्राप्त नहीं हो सकती । सुख सुविधा तो मिलेगी आपको। मकान छोटा है, बड़ा हो गया । सुख सुविधा आपको मिलेगी । आप का पहले कामकाज थोड़ा था, आपने बहुत Expand कर लिया है । उसे आप बहुत बड़े Industrialist हो गए हैं । अनेक सारी आपकी Factories हो गई है । Showroom हो गए हैं ।
Hotel हो गए हैं । इससे बेटा सुख सुविधा तो आपको मिलेगी । लेकिन शांति नहीं मिलेगी । यह शास्त्र ठोक बजा कर कहता है। याद रखिएगा इस बात को । आप को सुख सुविधा तो यह सब चीजें दे सकती हैं, लेकिन परमसुख की प्राप्ति नहीं होगी, परम शांति की प्राप्ति नहीं होगी ।
परम शांति की प्राप्ति किस के साथ जुड़ी हुई है, प्रभु प्राप्ति की चाह के साथ । जब आपके अंदर प्रभु प्राप्ति की चाह, उत्कट इच्छा है तो वह भी कामना । बेशक उसे कामना कहो । एक ऐसी कामना जो आपको मुक्ति देने वाली है । यह कामनाएं जितनी भी है, यह अकेली कामना आपको मुक्ति देने में सक्षम ।
वह अनेक कामनाएं सारी की सारी आपको हथकड़ियां लगाने वाली, पावों में बेड़ियां डालने वाली, यह बंधनकारी कामनाएं है । जब तक उन बंधनकारी कामनाओं का त्याग नहीं होता, तब तक परम शांति किसी भी हालत में आपको नहीं मिल सकती, यह शास्त्र स्पष्ट करते हैं । गीताचार्य भगवान श्री कृष्ण स्पष्ट करते हैं ।
एक मोटर Garage घर में होता है । आप लोग कार खड़ी करते हो । यह कैसे संभव हो । एक छोटे-से दृष्टांत के माध्यम से देखिएगा । कामनाओं रहित कर्म कैसे हुआ करता है ।
एक Garage है । आप अपनी कार को उसमें पार्क करके रखते हैं । प्रथम अवस्था कार की है । ना मोटर चल रही है, ना पहिया चल रहा है, कुछ भी नहीं । कुछ दिन से खड़ी है कार । ना काम करने की कामना है, ना कर्म है । मेहरबानी करके बहुत आसान उदाहरण है, सबकी समझ में आने वाली । कार आपके Garage में खड़ी है । आपने उसको Stop भी नहीं किया । खड़ी है तो ना कोई कामना है, ना ही कोई कर्म हो रहा है। आपने कार Start कर दी है । चाबी लगाई मोटर चलनी शुरू हो गई । लेकिन अभी पहिये हिलने शुरू नहीं हुए । कार अभी भी Garage में है । कामना तो हो गई, लेकिन कर्म नहीं है । कामना तो है लेकिन कर्म नहीं है । आपने Accelerator पर पांव रखा कार चलनी शुरू हो गई है ।
Garage से बाहर निकल आई है । मोटर भी चल रही है, और कर्म भी हो रहा है । पहिए भी चल रहे हैं, कामना भी है, और कर्म भी है । ढलान आ गई है । यहां से नीचे उतरो । आप लोग अपनी मोटर बंद कर देते हो । अब जरूरत नहीं । पहिए चलते हैं । यात्रा तय हो जाती है । काफी दूर तक आप बिना कार Start किए चले जाते है । स्कूटर वाले भी ऐसे ही करते हैं । स्कूटर को बंद कर देते हैं । ढलान है स्कूटर चलता रहता है, दूर तक, बिना फिर start किए चलता रहता है।
संत महात्मा कहते हैं यहां कामना नहीं है, कर्म हो रहा है । ऐसी अवस्था ही शांति दायनी अवस्था है । कामना ना हो पर कर्म होता रहे । ऐसी चौथी अवस्था को कर्मयोग का बहुत सुंदर उदाहरण समझा जाता है । कर्म योग क्या है, बिना कामना के जो कर्म होता है, जो कर्म किया जाता है, स्वत: स्वभावतया होता है, मुझे इससे सुख नहीं चाहिए । एक ही कामना है ना मुझे इससे सुख नहीं चाहिए । सुख तो मेरी समझ में आ गया है । जितना सुख मैं औरों को दूंगा वह परमात्मा देव, मुझे परमसुख का अधिकारी बना देगा । वह परमात्म देव मुझे, परम शांति अपने आप देगा । मुझे यह मांगने की जरूरत नहीं । मुझे क्या करना है, दूसरों को सुख देना है ।
अतएव संत महात्मा कहते हैं साधकजनो, भक्तजनों, सदा याद रखो । सुख भोगने की चीज नहीं है । मत इसके पीछे पड़ो । सुख भोगने की चीज नहीं है। सुख बांटने की चीज है । बांटिएगा तो परमसुख आपके पीछे पीछे घूमेंगे । वह परमात्म देव का सुख, वह भक्ति का सुख, परमानंद, परम शांति, सब आपके पीछे पीछे घूमेगी । क्यों ? आप परमात्मा का दाहिना हाथ बन कर तो काम कर रहे हो । दूसरों को सुख आप बांट रहे
हो । दूसरों को शांति दे रहे हो । दूसरों को आनंद बांट रहे हो । तो परमात्मा आपको शांति एवं आनंद से, अपने प्रेम से मालामाल कर देता है । बहुत अंतर है साधक जनो एक कर्म योगी में जो निष्काम भाव से कर्म कर रहा है, बिना भावना से कर्म कर रहा है, संसार में विचर रहा है, और एक भिखारी कामना करके तो कर्म कर रहा है । उसे साकामी कहा जाता है । एक साकामी में और एक निष्कामी में माता कितना अंतर होता है, जमीन आसमान का अंतर हो जाता है ।
एक राजा के घर चलिएगा । एक राजा के घर में होंगी तो बहुत, दो निजी दासिया थी । दो दो सेविकाएं है राजा की सेवा में । एक तनख्वाह लेने वाली वाली, और एक बिना तनख्वाह के राजा की सेवा करती है । एक को दासी कहा जाता है और दूसरी को महारानी कहा जाता है । कहां अंतर है । एक कामना से कर्म कर रही है, तनख्वाह लेकर, वेतन लेकर, कर्म कर रही है, और दूसरी पत्नी बन कर कर्म कर रही है । उसके अंदर किसी प्रकार की चाह नहीं है ।
कामना वाली जो सेविका है, जो नौकरानी है, जो दासी है, उसका अधिकार मात्र वेतन तक । एक महीने के बाद उसे सैलरी मिल जाती है। दूसरी महारानी बिना मांगे हुए सब कुछ पर अधिकार है उसका । तो कितना अंतर है, निष्कामता और सकामता में । कितना अंतर है बिना कामना के कर्म के और कामना सहित कर्म के । एक को दासी कहा जाता है । और छोटा बनाइए और छोटे चलिए और तो दूसरे को भिखारी कहा जाता है । और दूसरे को दाता, छोटे मालिक, मालकिन कहा जाता है । कितना अंतर है।
परमेश्वर की दृष्टि में जहां कामना होगी साधक जनो वहां आपका राग भी होगा, और द्वेष भी होगा । आप चाहते तो सुख हो, लेकिन हमेशा सुख तो मिलता नहीं है। आपकी चाह की पूर्ति आपके हाथ में नहीं है। क्योंकि आपके हाथ में नहीं है अतएव हर कर्म आपको सुख नहीं देता । है ना पक्की बात । हर कर्म आपको सुख नहीं देता । आप कर्म की चाह करने में तो स्वतंत्र हो, लेकिन वह कर्म देवी आपको सुख देगा या दुख इस पर आपका अधिकार नहीं है ।
कल करेंगे विशेष रूप से चर्चा सुख एवं दुख की । पर आज यहां पर चूंकि आपका अधिकार बिल्कुल नहीं है, की इस कर्म से आपको सफलता मिलेगी या असफलता मिलेगी, दुख मिलेगा या सुख मिलेगा । अतएव कर्म करने में आप की स्वतंत्रता है। कामना करने में आप स्वतंत्र हो,
लेकिन वह कामना से उपजा हुआ कर्म आपको सुख देगा या दुख देगा, यह आपके अधिकार में नहीं है । यह आपके वश की बात नहीं है । तो जो सुख देने वाला कर्म है उसको आप बार-बार करना चाहोगे । लेकिन बार-बार करने पर भी वह सुख नहीं सदा देगा । वह कभी ना कभी दुख देगा ही देगा। तो कर्म सुख भी देगा दुख भी देगा ।
जिस कर्म के साथ आपकी प्रीति हो जाया करती है, राग हो जाया करता है, साधक जनों वह एक ना एक दिन दुखदाई बनकर रहेगा । दुख देकर रहेगा । अतएव इस संसार में कर्म तो करो । लेकिन चिपक कर नहीं करना । एक शब्द याद रखो कर्म किस लिए कर रहे हो, यह मेरा कर्तव्य है । मैं अपना कर्तव्य निभा रहा हूं । परमात्मा का दिया हुआ दायित्व है, मैं उसको निभा रहा हूं ।
कल्पना कीजिएगा आप माई बाप हो । अपने पुत्र की पालना बहुत प्यार से करते हो। पुत्री से कहीं अधिक, पुत्री के इतने अच्छे ढंग से देखभाल नहीं की जाती, जितनी पुत्र की की जाती है । पुत्री तो बेगानी है । वह अपने घर चली जाएगी । अतएव उस बेचारी की बहुत पूछताछ नहीं होती । पुत्र की देखभाल भी विशेष की जाती है। यही तो है जो हमारी सेवा करेगा । जहां साधक जनो आपने सेवा की अपेक्षा रखी, आप क्यों कर्म कर रहे हो, इसलिए कि वह बड़ा होकर हमारी सेवा करेगा । वहीं आप मार खा जाओगे । कर्म कर्तव्य नहीं बन कर, सकाम कर्म बन जाएगा । दुखदाई कर्म बन जाएगा । कौन जानता है कि पुत्र कल को सिर पर जूतियां मारेगा, घर से बाहर निकाल देगा या घर में रहकर हमारी सेवा करेगा। आपका कर्म कर्मयोग नहीं रह सकेगा । क्यों ? पुत्र की पालना कर रहे हो यह मेरा कर्तव्य है, बसससस । तो यह कर्तव्य, यह कर्म, कर्मयोग बन जाएगा ।
एक लेडी डॉक्टर, अनेक बच्चों को, जितनी भी माताएं आती हैं गर्भवती, बच्चों को जन्म दिलवाती है । वहां पर आज किसी एक महिला के घर 10 वर्ष के बाद पुत्र पैदा हुआ है । डॉक्टरानी को पता है पिछली हिस्ट्री का पता है । 10 साल के बाद इनके घर संतान पैदा हुई है । अतएव बाहर निकलकर Operation Theatre से तो Parents को, मां को तो पता नहीं, लेकिन बाहर निकल कर तो परिवार को बहुत-बहुत बधाई देती है । पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है । इतनी सुनने की देरी है, घर सूचना जाती है। बैंड बाजा बजाना शुरू हो जाता है । लड्डू बंटने शुरू हो जाते हैं । एक खुशी का माहौल हो जाता है । दो-चार दिन, किसी कारणवश बच्चे और बच्चे की मां को हस्पताल में रखने की जरूरत पड़ी ।
1 सप्ताह के बाद उस पुत्र की मृत्यु हो गई। डॉक्टरानी आज क्या कहती है, आज दोनों मां अंदर है । पिता बाहर है । परिवार बाहर हैं । इतना ही तो कहती है ना, मुझे अफसोस है, बहुत कोशिश करने पर भी मैं आपके पुत्र को बचा नहीं सकी । मेहरबानी करके एक सफेद कपड़े में उस बालक को लपेट देती है डॉक्टर । और यही कहती है ना मेहरबानी करके आप बच्चे तो ले जाइएगा । कमरा खाली कर दीजिएगा । किसी Next patient को यहां आना है ।
उसे इस कर्म से पुत्र के पैदा होने से और पुत्र की मृत्यु पर ना हर्ष है, ना शोक है ।
वह सिर्फ अपने कर्तव्य का पालन कर रही है। घर में वह जाती है । यदि वहां भी ऐसा करती है, तो वह कर्मयोगिनी है । वह कर्मयोगी है । लेकिन घर में जाकर यह सब कुछ होता नहीं है । घर में जाकर तो यह मेरी पुत्री है, यह मेरा पुत्र है, यह मेरा घर है, यह मेरा पति है, सब कुछ मेरा हो जाता है । वहां तो वह कर्तव्य पालन कर रही है, अस्पताल में । लेकिन घर में यह कर्तव्य भूल जाता है। अतएव कर्तव्य का पालन करना देवियों सज्जनों है कर्मयोग ।
मोह ममता के जाल में फंसना है,
सकाम कर्म बंधन का कारण। परसों जारी रखेंगे साधक जनों इस चर्चा को और आगे। अब यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद ।
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