Premium Only Content

Geeta Gyan | Adhyay -1 | part-12
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव
मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ | मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है | हे कृष्ण ! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं |
तात्पर्य
अपने अधैर्य के कारण अर्जुन युद्धभूमि में खड़ा रहने में असमर्थ था और अपने मन की इस दुर्बलता के कारण उसे आत्मविस्मृति हो रही थी | भौतिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक आसक्ति के कारण मनुष्य ऐसी मोहमयी स्थिति में पड़ जाता है | भय द्वितीयाभिनिवेशतः स्यात्- (भागवत ११.२.३७) - ऐसा भय तथा मानसिक असुंतलन उन व्यक्तियों में उत्पन्न होता है जो भौतिक परिस्थितियों से ग्रस्त होते हैं | अर्जुन को युद्धभूमि में केवल दुखदायी पराजय की प्रतीति हो रही थी - वह शतु पर विजय पाकर भी सुखी नहीं होगा | निमित्तानि विपरीतानि शब्द महत्त्वपूर्ण हैं | जब मनुष्य को अपनी आशाओं में केवल निराशा दिखती है तो वह सोचता है “मैं यहाँ क्यों हूँ?" प्रत्येक प्राणी अपने में तथा अपने स्वार्थ में रूचि रखता है | किसी की भी परमात्मा में रूचि नहीं होती | कृष्ण की इच्छा से अर्जुन अपने स्वार्थ के प्रति अज्ञान दिखा रहा है | मनुष्य का वास्तविक स्वार्थ तो विष्णु या कृष्ण में निहित है | बद्धजीव इसे भूल जाता है इसीलिए उसे भौतिक कष्ट उठाने पड़ते हैं | अर्जुन ने सोचा कि उसकी विजय केवल उसके शोक का कारण बन सकती है
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे न काले विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च |
हे कृष्ण ! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उससे किसी प्रकार की विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ | तात्पर्य
यह जाने बिना की मनुष्य का स्वार्थ विष्णु (या कृष्ण) में है सारे बद्धजीव शारीरिक सम्बन्धों के प्रति यह सोच कर
आकर्षित होते हैं कि वे ऐसी परिस्थितियों में प्रसन्न रहेंगे | ऐसी देहात्मबुद्धि के कारण वे भौतिक सुख के कारणों को
भी भूल जाते हैं | अर्जुन तो क्षत्रिय का नैतिक धर्म भी भूल गया था | कहा जाता है कि दो प्रकार के मनुष्य परम
शक्तिशाली तथा जाज्वल्यमान सूर्यमण्डल में प्रवेश करने के योग्य होते हैं | ये हैं - एक तो क्षत्रिय जो कृष्ण की आज्ञा
से युद्ध में मरता है तथा दूसरा संन्यासी जो आध्यात्मिक अनुशीलन में लगा रहता है | अर्जुन अपने शतुओं को भी
मारने से विमुख हो रहा है - अपने सम्बन्धियों की बात तो छोड़ दें | वह सोचता है कि स्वजनों को मारने से उसे जीवन
में सुख नहीं मिल सकेगा, अतः वह लड़ने के लिए इच्छुक नहीं है, जिस प्रकार कि भूख न लगने पर कोई भोजन
बनाने को तैयार नहीं होता | उसने तो वन जाने का निश्चय कर लिया है जहाँ वह एकांत में निराशापूर्ण जीवन काट
सके | किन्तु क्षत्रिय होने के नाते उसे अपने जीवननिर्वाह के लिए राज्य चाहिए क्योंकि क्षत्रिय कोई अन्य कार्य नहीं
कर सकता | किन्तु अर्जुन के पास राज्य कहाँ है? उसके लिए तो राज्य प्राप्त करने का एकमात्र अवसर है कि अपने
बन्धु-बान्धवों से लड़कर अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त करे जिसे वह करना नहीं चाह रहा है | इसीलिए
वह अपने को जंगल में एकान्तवास करके निराशा का एकांत जीवन बिताने के योग्य समझता है हे गोविन्द ! हमें राज्य, सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ ! क्योंकि जिन सारे लोगों के लिए हम उन्हें चाहते हैं वे ही इस युद्धभूमि में खड़े हैं | हे मधुसूदन ! जब गुरुजन, पितृगण, पुत्लगण, पितामह, मामा, ससुर, पौत्रगण, साले तथा अन्य सारे सम्बन्धी अपना धन एवं प्राण देने के लिए तत्पर हैं और मेरे समक्ष खड़े हैं तो फिर मैं इन सबको क्यों मारना चाहूँगा, भले ही वे मुझे क्यों न मार डालें ? हे जीवों के पालक ! मैं इन सबों से लड़ने को तैयार नहीं, भले ही बदले में मुझे तीनों लोक क्यों न मिलते हों, इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दें | भला धृतराष्ट्र के पुत्त्रों को मारकर हमें कौन सी प्रसन्नता मिलेगी ? किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च। त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च आचार्याः पितरः पुत्त्रास्तथैव च पितामहाः
मातुलाः श्चशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा ० एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन॥ अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन
तात्पर्य
अर्जुन ने भगवान् कृष्ण को गोविन्द कहकर सम्बोधित किया क्योंकि वे गौवोंतथा इन्द्रियों की समस्त प्रसन्नता के विषय हैं | इस विशिष्ट शब्द का प्रयोग करके अर्जुन संकेत करता है कि कृष्ण यह समझें कि अर्जुन की इन्द्रियाँ कैसे तृप्त होंगी | किन्तु गोविन्द हमारी इन्द्रियों को तुष्ट करने के लिए नहीं हैं | हाँ, यदि हम गोविन्द की इन्द्रियों को तुष्ट करने का प्रयास करते हैं तो हमारी इन्द्रियाँ स्वतः तुष्ट होती हैं | भौतिक दृष्टि से, प्रत्येक व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को तुष्ट करना चाहता है और चाहता है कि ईश्वर उसके आज्ञापालक की तरह काम करें | किन्तु ईश्ववर उनकी तृप्ति वहीं तक करते हैं जितनी के वे पात्र होते हैं - उस हद तक नहीं जितना वे चाहते हैं | किन्तु जब कोई इसके विपरीत मार्ग ग्रहण करता है अर्थात् जब वह अपनी इन्द्रियों की तृप्ति की चिन्ता न करके गोविन्द की इन्द्रियों की तुष्टि करने का प्रयास करता है तो गोविन्द की कृपा से जीव की सारी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं | यहाँ पर जाति तथा कुटुम्बियों के प्रति अर्जुन का प्रगाढ़ स्नेह आंशिक रूप से इन सबके प्रति उसकी स्वभाविक करुणा के कारण है | अतः वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं है | हर व्यक्ति अपने वैभव का प्रदर्शन अपने मित्रों तथा परिजनों के समक्ष करना चाहता है किन्तु अर्जुन को भय है कि उसके सारे मित्र तथा परिजन युद्धभूमि में मारे जायेंगे और वह विजय के पश्चात् उनके साथ अपने वैभव का उपयोग नहीं कर सकेगा | भौतिक जीवन का यह सामान्य लेखा जोखा है |
-
VapinGamers
1 hour agoJump Space - We All Scream in Space - Early Access - !rumbot !music
63 -
LIVE
Joker Effect
38 minutes ago(Kick) Streamers Have Ruined The Streaming Landscape and Here is How! Reviewing Phase Partners...
480 watching -
The Blood Lust Gaming
3 hours agoClair Obscur: Expedition 33 - LVL 1 challenge run pt.3
37 -
2:11:38
Nikko Ortiz
2 hours agoPTSD Is Fun Sometimes | Rumble LIVE
9.35K -
1:02:40
BonginoReport
3 hours agoA Florida Man Attempts a Jussie Smollett Hoax - Nightly Scroll with Hayley (Ep. 146)
118K56 -
LIVE
XxXAztecwarrior
2 hours agoNew Season/ New missions/Delta Force
35 watching -
1:17:15
Playback Request Live
2 hours agoPRL EP 14 - EMO NIGHT 🖤
7.54K2 -
Blabs Games
4 hours agoWill We Find A Server? Star Wars Battlefront II | Noob Plays
10.6K1 -
LIVE
LFA TV
22 hours agoLIVE & BREAKING NEWS! | WEDNESDAY 10/1/25
627 watching -
30:00
BEK TV
9 hours agoGUT HEALTH AND THE POWER OF KIMCHI WITH KIM BRIGHT ON TRENT ON THE LOOS
9.51K