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जोसेफ स्मिथ: प्रेरक जीवन कहानी
जोसेफ़ स्मिथ जूनियर एक अमेरिकी धार्मिक और राजनीतिक नेता थे, जिनका जीवन एक रोमांचक, विवादास्पद, और अंततः दुखद यात्रा थी। उनका जन्म २३ दिसंबर १८०५ को हुआ और २७ जून १८४४ को उनकी हत्या कर दी गई। यह एक छोटी सी उम्र थी, लेकिन इस दौरान उन्होंने एक वैश्विक धार्मिक आंदोलन, मॉर्मनवाद, की नींव रखी जिसके आज लाखों अनुयायी हैं। जोसेफ़ स्मिथ की कहानी, सफलता और विफलता, आस्था और संदेह, विश्वास और विरोध का एक अनूठा मिश्रण है, जो हमें जीवन के मूल्यों के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर करती है।
पश्चिमी न्यू यॉर्क में बड़े हुए जोसेफ़, उस समय के प्रबल धार्मिक पुनर्जागरण के प्रभाव में आए। १८२० में, उन्होंने एक दर्शन का वर्णन किया, जिसमें उन्होंने ईश्वर पिता और यीशु मसीह को देखा। यह अनुभव उनके जीवन का केंद्रबिंदु बन गया। तीन साल बाद, एक स्वर्गदूत ने उन्हें सोने की प्लेटों के बारे में बताया, जिन पर एक प्राचीन अमेरिकी सभ्यता का इतिहास उत्कीर्ण था। १८३० में, उन्होंने इन प्लेटों का अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किया, जिसे हम बुक ऑफ़ मॉर्मन के नाम से जानते हैं। उसी वर्ष उन्होंने चर्च ऑफ़ क्राइस्ट की स्थापना की, जिसे बाद में लैटर डे सेंट्स या मॉर्मन चर्च के नाम से जाना गया।
जोसेफ़ और उनके अनुयायी पश्चिम की ओर बढ़े, एक आदर्श समाज बनाने के सपने के साथ। ओहायो और मिसौरी में बसने के बाद, उनका सामना हिंसा और विरोध का हुआ, जिससे उन्हें इलिनोइस के नौवू में एक नया बस्ती बसाना पड़ा। नौवू तेज़ी से विकसित हुआ, और जोसेफ़ स्मिथ वहाँ के मेयर भी बने।
१८४४ में, जोसेफ़ स्मिथ ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा। इस दौरान एक समाचार पत्र ने उनकी शक्ति और बहुविवाह की प्रथा पर आलोचना की, जिससे माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया। जोसेफ़ को गिरफ़्तार किया गया और कार्थाज जेल में बंद कर दिया गया। २७ जून १८४४ को एक भीड़ ने जेल पर हमला कर दिया और जोसेफ़ और उनके भाई हाय्राम स्मिथ की हत्या कर दी।
जोसेफ़ स्मिथ ने अनेक धार्मिक ग्रंथ लिखे, जिन्हें उन्होंने ईश्वरीय प्रेरणा से प्राप्त बताया। उनके अनुयायी उनकी शिक्षाओं को प्रेरक और दिव्य मानते हैं। उनके ग्रंथों में ईश्वर की प्रकृति, ब्रह्मांड विज्ञान, पारिवारिक ढाँचा, राजनीतिक संगठन और धार्मिक समुदाय और अधिकार के बारे में चर्चा है।
जोसेफ़ स्मिथ का जीवन एक साक्षी है कि आस्था कितनी शक्तिशाली हो सकती है, और साथ ही यह भी दर्शाता है कि विश्वास के रास्ते में कितने कठिनाइयाँ आ सकती हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि आस्था और दृढ़ता के साथ आगे बढ़ने से ही हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं, भले ही रास्ते में कितनी भी बाधाएँ आएँ। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि सच्चा विश्वास हिंसा और विरोध को कभी भी नहीं जन्म देता। शांति और सहिष्णुता ही सच्चे धर्म का मूल है।
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